Friday, March 25, 2011

हर रिश्ते में फनकारी है ...

बस चेहरों की अय्यारी है
हर रिश्ते में फनकारी है

बाज़ार सजा है निस्बत का
और बिकने की तैयारी है

सूरज का भरोसा देता है
सब जुगनू की मक्कारी है

है फूट के रोया सारी शब
जी चाँद का अब तक भारी है

मेरे दिल की चुगली करते हैं
इन लफ्जों में गद्दारी है

एक मुद्दत बाद चखा उनको
मेरी ग़ज़लों की इफ्तारी है .

Sunday, March 13, 2011

कुछ वित्तीय खुराफ़ातें … :)

ये जालिम ज़माना मुझ प्रेमी-मन को जबरन वित्तीय गणित सिखाने की कोशिश में है कि हम कुछ इन्सान हो जायें ! और हम ठहरे देसी कुत्ते की खालिस दुम …… "इको-नामिक्स" में भी "प्रेमो-नामिक्स" पढ़ने लगे और जो कुछ पढ़े वो आप सब के सामने रख रहे हैं ………… झेलिये ... :P

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इन्फ्लेशन

मैं ढेरों खर्चता हूँ
अपने ख्वाब के सिक्के
तब कहीं जा कर थोड़ा सा
"तुम" खरीद पाता हूँ

इन्फ्लेशन* बहुत बढ़ गयी है
तुम्हारे तसव्वुर के देश में.

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घाटा

मैने तो खर्च डाली है
सारी मुहब्बत तुम्हारे कोटे की
तुमने ही जाने क्यों भरा नही
अपने हिस्से का उलफती-राजस्व

कहो तो कैसे कम होगा भला
इस बरस का ये मोहब्बतीय घाटा.

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कमीशन

मैं हर रोज
चाँद से खरीदता हूँ
तुम्हारे ख्वाब के शेयर...
बेईमान रात
हर रोज काट लेती है
कमीशन उस से...

"सेबी"* सूरज से
ज़रा कर दो ना शिकायत उसकी !




इन्फ्लेशन* --inflation -- मुद्रास्फीति
सेबी -- SEBI -- Securities & Exchange Board of India.

Tuesday, March 8, 2011

ख़्वाबों का उड़न खटोला था ...

उस रोज़ फलक हिंडोला था
इक ख्वाब देर तक डोला था

तब चाँद उठा था दरिया से
जब शाम ने सूरज घोला था

कुछ बादल थे सौगात मिले
और कुछ तारों को मोला था

फिर उसके दिल पे दस्तक कि
और उसने झरोखा खोला था

दिल दोनों छिटक कर उछले थे
और हमने उफक टटोला था

लम्हों को थाम दिया उसने
ये वक़्त भी कितना भोला था

पर आँख खुली तो गायब था
ख़्वाबों का उड़न खटोला था


ये किस्सा सा है,एक ख्वाब का,जो हक़ीकत के बेहद करीब का है पर फिर भी एक ख्वाब कि ही तरह झूठा :)। Confused !!
मैं भी Confused हूँ कि इसे ग़जल कहूँ या नज़्म……! खैर जो भी है…झेलिये

Wednesday, March 2, 2011

खेल-खेल में …

रस्सा-कशी
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आसमान के प्ले ग्राउंड में
हम-तुम पहुंचे
चाँद से बाँधा सूरज
ज्या की डोरी से

तुमने सिरा
चाँद का थामा
मैंने सूरज थाम लिया

अब रस्सा-कशी का खेल
हुआ करता है हरदम
जो तुमने खींचा
सांझ ढली
जो मैंने खींचा
भोर हुई ।



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स्ट्राईकर

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लोग रहते हैं
गोटियों की मानिंद..
ज़िन्दगी की बिसात
बिखरी पड़ी है ...
कितनी ही बार
छू के गुजरे हैं
अपनी मंजिल का
रास्ता पा कर ...

मैं
सबके साथ बढता जाता हूँ
फिर तनहा लौट आता हूँ
कैरम के स्ट्राईकर की तरह ..

सबके हमसफ़र का
कोई अपना सफ़र नहीं होता !
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