Thursday, September 30, 2010

मेरे हमनफस तू जो साथ हो..


मेरे हमनफस तू जो साथ हो
तो किसे मंज़िलों की तलाश हो

चाहे हो बहारों की रहबरी
या कि खार चलते हों हमकदम
वो सफ़र रहेगा सुकूँ भरा
मेरे हाथों में जो तेरा हाथ हो

मेरे हमनफस ! तू जो साथ हो..
तो किसे मंज़िलों की तलाश हो..

चाहे राह निकले खलाओं से
या कि उड़ के गुजरें घटाओं से
कोई दस्त-ओ-दरिया हो रूबरू
या चलें ज़न्नती फ़ज़ाओं से

हर एक शय होगी मय-छलक
चाहे जैसी भी कायानात हो
मेरे हमनफस तू जो साथ हो
तो किसे मंज़िलों की तलाश हो

जो कदम मेरे कभी गिर पड़ें
कभी हौसला ज़मींदोज़ हो
कभी रूह निकल जाए जिस्म से
ये कोई हादसा किसी रोज़ हो

मुझे थाम लेना सनम मेरे
किसी डर की फिर क्या बिसात हो
मेरे हमनफस ! तू जो साथ हो..
तो किसे मंज़िलों की तलाश हो..

Latitudes




स्कूल में टंगे
दुनिया के नक्शे पर
कितनी ही आड़ी -टेढी
लकीरें हुआ करती थीं .....

क्लास में
जिन का पढ़ कर हम
दुनिया की मनचाही जगहें
ढूंढ लिया करते थे ...

मैं फिर
माज़ी की क्लास में बैठा ...
उम्र के
latitudes को पढना
सीख रहा हूँ ..

कि जिंदगी के नक्शे पर
लम्हों की उस बस्ती को
फिर से दूंढ़ सकूं ..
जहाँ मैं और तुम
अब भी साथ रहा करते हैं ... !
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