Friday, January 2, 2009

बेकल साँसों के घूँघरू है
















बेकल
साँसों के घुँघरू है,
तू छेड़ सुरीली तान प्रिये,
रोक ले गिरते सूरज को,
दिन होने को अवसान प्रिये,

तेरे पथ में बिछी ये आँखें ,
अब देख बुझी सी जाती है,
जो तेरे पग से गति पाती थी,
वो पवन रुकी सी जाती है,
अब विरह मुझसे सही जाती,
निकले जाते है प्राण, प्रिये,

बेकल साँसों के घुँघरू है,
तू छेड़ सुरीली तान प्रिये.........

तुम जानो मैं व्याकुल कितना,
मैं जानूं तुम भी बावरी सी,
फिर आज मिलन की बेला में,
है जाने यह देरी कैसी,
जब नयन-हृदय-मन प्राण मिले
फिर कैसा अब व्यवधान प्रिये,

बेकल साँसों के घुँघरू है,
तू छेड़ सुरीली तान प्रिये.......!!

Mera saath





















संग उस मोड़ तक हम चलेंगे जहाँ,
हम सफ़र कोई दूजा मिलेगा नहीं...
चाहनेवाले तुमको मिलेंगे बहुत,
पूजने वाला मुझसा मिलेगा नहीं...

फूल ही यूँ तो होते सगुण प्रेम का,
कांटो का ही सही तोहफा तो मिले...
कुछ उजाला तो हो प्रेम की राह में,
दीप के बदले चाहे मेरा दिल ही जले...

हैं पसंद मुझको कांटे कहीं फूल से...
खार फूलों सा मुरझा गिरेगा नहीं....
संग उस मोड़ तक हम चलेंगे जहाँ...
हमसफ़र कोई दूजा मिलेगा नहीं.....................

तुम ना चाहो हमें इसका कुछ गम नहीं,
प्रेम साधन नहीं, साधना हैं मेरी...
मन से मिलना ही मन का, प्रिये, प्रेम हैं,
दूर हो कर भी तुम प्रेरणा हो मेरी...

चाहता ही रहूँगा तुम्हे मैं सदा,
कोई प्रतिदान चाहे मिले या नहीं...
संग उस मोड़ तक हम चलेंगे जहाँ ,
हमसफ़र कोई दूजा मिलेगा नहीं...
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...