Wednesday, December 31, 2008

तेरा -मेरा क्या रिश्ता है














तेरा मेरा क्या रिश्ता हैं ,
क्या मैं जग को बतलाऊँ ,
क्या परिभाषा दूं मैं इसकी
किन उपमानों से समझाऊँ ?


मेरी साँसें मेरा जीवन ,
मेरी धड़कन की आवाज़ हो तुम ,
मेरी चाहत मेरे अरमाँ,
मेरे ख्वाबों की परवाज़ हो तुम .


तुम हो हर वो शब्द
मेरी कलम लिखा जो करती है,
तुम ही वो मुस्कान
मेरे होठों पे रहा जो करती है,


तुम ही मेरी सोच ,
तुम ही हो अभिव्यक्त मेरे भावों में ,
तुम ही मंजिल और तुम्ही हो ,
हमसफ़र मेरी राहों में

मैं ढूँढू जब बाहर तुमको
खुद में तुमको मैं पाऊँ ,
तुमको पाने की चाहत में ,
खुद तुझमे खोता जाऊं ....

तेरा -मेरा क्या रिश्ता है...
क्या मैं जग को बतलाऊँ ...

जब तेरी मेरी बातें होती
तब भाषा मौन हो जाती है ,
मैं और तुम की अलग -अलग
पहचान गौण हो जाती है ..

जो बंध नहीं सकता शब्दों में
ये मौन उसी की परिभाषा है ,
इतना विशाल यह सम्बन्ध -स्वरुप
इतनी विराट यह गाथा है .

इसको बतलाने को शब्द कोश में 

मुझको मिलते हैं शब्द नहीं ,
इसको लिखने में कलम मेरी
रुक जाती है निस्तब्ध कहीं ..

इस अनबूझे रिश्ते को जग
गर समझो मुझको बतलाना ,
पर याद रहे अब शेष नहीं
मेरा -तेरा , खोना पाना ..

जितना सुलझाऊं इस उलझन को ,
इसमें उतना मैं उलझा जाऊं ,
तेरा -मेरा क्या रिश्ता है
क्या मैं जग को बतलाऊँ . ...
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...